Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 388] [प्रजापनासूत्र / जीव से, द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य हैं, प्रदेश की अपेक्षा से तुल्य है, तथा अवगाहना की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित हैं, वर्ण, गंध रस एवं स्पर्श के पर्यायों, दो ज्ञानों, दो अज्ञानों तथा प्रचक्षु-दर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है / . [2] एवं उक्कोसोगाहणए वि / णवरं णाणा णस्थि / [473-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों का पर्यायविषयक कथन करना चाहिए / किन्तु उत्कृष्ट अवगाहना वाले में ज्ञान नहीं होता, इतना अन्तर है। _[3] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए जहा जहण्णोगाहणए। णवरं सटाणे प्रोगाहणाए चउट्ठाणवडिते। [473-3] अजघन्य-अतुत्कृष्ट अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्यायों के विषय में जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्यायों की तरह कहना चाहिए / विशेषता यह है कि स्वस्थान में अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है। 474. [1] जहण्णठितीयाणं भंते ! बेइंदियाणं पुच्छा / गोयमा ! प्रणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति जहण्णठितीयाणं बेइंदियाणं प्रणता पज्जवा पण्णता? गोयमा ! जहण्णठितीए बेइंदिए जहण्णठितीयस बेइंदियस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, प्रोगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि दोहि अण्णाणेहि प्रचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [474-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? [474-1 उ.) गौतम ! (उनके ) अनन्त पर्याय कहे हैं / [प्र.] भगवन् ! किस दृष्टि से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय कहे हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्य स्थिति बाला द्वीन्द्रिय, दूसरे जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय से द्रव्यापेक्षया तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है; तथा वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों, दो अज्ञानों एवं अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है / [2] एवं उक्कोसठितीए वि / णवरं दो गाणा अभइया / [474-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रियजीवों का भी (पर्यायविषयक कथन करना चाहिए।) विशेष यह है कि इनमें दो ज्ञान अधिक कहना चाहिए [3] अजहण्णमणुक्कोसठितीए जहा उक्कोसठितीए / णवरं ठितीए तिद्वाणवडिते। [474-3] जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्याय के विषय में कहा गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org