________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद)] [389 है, उसी प्रकार मध्यम स्थिति वाले द्वीन्द्रियों के पर्याय के विषय में कहना चाहिए / अन्तर इतना ही है कि स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है / 475. [1] जहण्णगुणकालयाण बेइंदियोणं पुच्छा / गोयमा ! प्रणता पज्जवा पण्णत्ता। से केण→णं भंते ! एवं वुच्चति जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णता ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए बेइंदिए जहण्णगुणकालयस्स 'बेइंदियस्स दध्वट्टयाए तुल्ले, पबेसट्टयाए तुल्ले, प्रोगाहणटुयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिढाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले, प्रवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि दोहिं णाणेहिं दोहि अण्णाणेहि अचखुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [475-1 प्र.] जघन्यगुण कृष्णवर्ण वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [475-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्यगुण काले द्वीन्द्रियों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुण काला द्वीन्द्रिय जीव, दूसरे जघन्यगुण काले द्वीन्द्रिय जीव से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित (न्यूनाधिक) है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, कृष्णवर्णपर्याय की अपेक्षा से तुल्य है, शेष वर्णों तथा गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से; दो ज्ञान, दो अज्ञान एवं अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। [2] एवं उक्कोसगुणकालए वि / [475-2] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले द्वीन्द्रियों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए / [3] प्रजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव / णवरं सट्टाणे छट्ठाणवड़िते / [475-2] अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण काले द्वीन्द्रिय जीवों का (पर्यायविषयक कथन भी) इसी प्रकार (करना चाहिए / ) विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित (हीनाधिक) होता है / 476. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा भाणितन्वा / [476] इसी तरह पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और पाठ स्पर्शों का (पर्याय विषयक) कथन - करना चाहिए। 477. [1] जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते ! बेंदियाणं केवतिया पज्जवा पण्णता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणो बेइंदिए जहाजाभिणिबोहियणाणिस्स बेइंदियस्स दन्वट्ठ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org