________________ 392) [प्रज्ञापनासूत्र पर्याय होते हैं / ' त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की प्ररूपणा यथायोग्य द्वीन्द्रियों की तरह समझ लेना चाहिए। जघन्य अवगाहनादि वाले पंचेन्द्रियतियंचों की विविध अपेक्षाओं से पर्याय प्ररूपणा 481. [1] जहणोगाहणगाणं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णता? गोयमा ! प्रणता पज्जवा पण्णता। - से केणयॊणं भंते ! एवं वुच्चति जहण्णोगाहणगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं प्रणता पज्जया पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णोगाहणए पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहण्णोगाहणयस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दवट्टयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, प्रोगाहणट्टयाए तुल्ले, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रसफासपज्जवेहि दोहिं गाणेहि दोहि अण्णाहिं दोहिं दंसहि छट्ठाणवडिते। [481-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [481-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं / [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस अपेक्षा से कहा जाता कि 'जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के अनन्त पर्याय हैं ?' [उ.] गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला पंचेन्द्रिय तियंच, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय तिर्यच से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना को अपेक्षा से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों, दो ज्ञानों, अज्ञानों और दो दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव / णवरं तिहि पाहि तिहि अण्णाहि] तिहि दंसह छट्ठाणवडिते। [481-2] उत्कृष्ट अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का (पर्याय-विषयक कथन) भी इसो प्रकार कहना चाहिए, विशेषता इतनी ही है कि तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है / [3] जहा उक्कोसोगाहणए तहा अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि। गवरं प्रोगाहणट्ठयाए चउढाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए। [481-3] जिस प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिथंचों का (पर्यायविषयक) कथन (किया गया) है, उसी प्रकार अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक 193 (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी भा. 2, पृ. 701 से 707 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org