________________ * * पंचमं विसेसपयं (पज्जवपयं) पंचम विशेषपद (पर्यायपद) प्राथमिक प्रज्ञापनासूत्र का यह पंचम विशेषपद' अथवा 'पर्यायपद' है। 'विशेष' शब्द के दो अर्थ फलित होते हैं—(१) जीवादि द्रव्यों के विशेष अर्थात्-प्रकार और (2) जीवादि द्रव्यों के विशेष अर्थात्-पर्याय / प्रथम पद में जीव और अजीव, इन दो द्रव्यों के प्रकार, भेद-प्रभेद सहित बताये गए हैं। उसकी यहाँ भी संक्षेप में (सू. 436 एवं 500-501 में) पुनरावृत्ति की गई है / वह इसलिए कि प्रस्तुत पद में यह बात स्पष्ट करनी है कि जीव और अजीव के जो प्रकार हैं, उनमें से प्रत्येक के अनन्त पर्याय हैं / यदि प्रत्येक के अनन्त पर्याय हों तो समग्र जीवों या समग्र अजीवों के अनन्त पर्याय हों, इसमें कहना ही क्या ? इस पद का नाम 'विशेषपद' रखा जाने पर भी इस पद के सूत्रों में कहीं भी विशेष शब्द का प्रयोग नहीं किया गया, समग्र पद में पर्याय' शब्द उनके लिए प्रयुक्त हुआ है। जैनशास्त्रों में भी यत्रतत्र 'पर्याय' शब्द को अधिक महत्त्व दिया गया है / इससे ग्रन्थकार ने एक बात सूचित कर दी है-वह यह है कि पर्याय या विशेष में कोई अन्तर नहीं है / जो नाना प्रकार के जीव या अजीव दिखाई देते हैं, वे सब द्रव्य के ही पर्याय हैं। फिर भले ही वे सामान्य के विशेषरूप--प्रकाररूप हों या द्रव्यविशेष के पर्याय रूप हो / जीव के जो नारकादि भेद बताए हैं, वे सभी प्रकार उसउस जीव द्रव्य के पर्याय हैं, क्योंकि अनादिकाल से जीव अनेक बार उस-उस रूप में उत्पन्न होता है / जैसे किसी एक जीव के वे पर्याय हैं, वैसे समस्त जीवों की योग्यता समान होने से उन सब ने नरक, तिर्यञ्च आदि रूप में जन्म लिया ही है। इस प्रकार जिसे प्रकार या भेद अथवा विशेष कहा जाता है, वह प्रत्येक जीवद्रव्य की अपेक्षा से पर्याय ही है, वह जीव की एक विशेष अवस्था पर्याय या परिणाम ही है। प्रस्तुत में 'पर्याय' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है-(१) प्रकार या भेद अर्थ में तथा (2) अवस्था या परिणाम अर्थ में। जीव सामान्य के नारक आदि अनेक भेद-विशेष हैं, अत: उन्हें जीव के पर्याय कहे हैं और जीवसामान्य के अनेक परिणाम-पर्याय भी हैं, इस कारण उन्हें भी जीव के पर्याय कहे हैं / इसी प्रकार अजीव के विषय में भी समझ लेना चाहिए / इस प्रकार शास्त्रकार ने 'पर्याय' शब्द का दो अर्थों में प्रयोग किया है तथा पर्याय और विशेष दोनों एकार्थक माने हैं। जैनागमों में पर्याय शब्द ही प्रचलित था, किन्तु वैशेषिकदर्शन में 'विशेष' शब्द का प्रयोग' होने लगा था, अतः उस शब्द का प्रयोग पर्याय अर्थ में एवं बस्तु 1. देखें, तर्कसंग्रह तथा वैशेषिकदर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org