________________ 382] [प्रज्ञापनासूत्र पदेसद्वयाए तुल्ले, प्रोगाहणट्टयाए तुल्ले, ठितोए चउढाणवडिते, वन्नादीहिं छट्ठाणवडिते, आभिणिबोहियणाण-सुतणाण-प्रोहिणाणपज्जवेहि तिहिं अण्णाणेहि तिहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते। [464-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे [464-1 उ.] गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? [उ.] गौतम! एक जघन्य अवगाहना वाला असरकुमार, दुसरे जघन्य अवगाहना वा असुरकुमार से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से भी तुल्य है; (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) है, वर्ण आदि की दृष्टि से षट्स्थानपतित है; आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान के पर्यायों, तीन अज्ञानों तथा तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है / [2] एवं उक्कोसोगाहणए वि। एवं प्रजहन्नमणुक्कोसोगाहणए वि / नवरं उक्कोसोगाहणए वि असुरकुमारे ठितीए चउट्ठाणवडिते। [464-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले असुरकुमारों के (पर्यायों के) विषय में (समझ लेना चाहिए।) तथा इसी प्रकार मध्यम (अजघन्य-अनुत्कृष्ट) अवगाहना वाले असुरकुमारों के (पर्यायों के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए।) विशेष यह है कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले असुरकुमार भी स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) हैं। 465. एवं जाव थणियकुमारा / [465] असुरकुमारों (के पर्यायों की वक्तव्यता) की तरह ही यावत् स्तनितकुमारों तक (के पर्यायों की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए।) विवेचना-जघन्यादियुक्त प्रवगाहना वाले असुरकुमारादि भवनवासियों के पर्याय-प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 464-465) में असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना वाले दशाविध भवनपतियों के अनन्त पर्यायों का सयुक्तिक निरूपण किया गया है / जघन्यादियुक्त अवगाहनादि विशिष्ट एकेन्द्रियों के पर्याय 466. [1] जहण्णोगाहणगाणं भंते ! पुढविकाइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णता। से केण→णं भंते ! एवं बुच्चति जहण्णोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं प्रणता पज्जवा पण्णता? गोयमा ! जहण्णोगाहणए पुढबिकाइए जहण्णोगाहणगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, प्रोगाहणट्टयाए तुल्ले, ठितीए तिट्ठाणडिते, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि दोहि अण्णाणेहि प्रचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणडिते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org