________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद)] [ 361 महिए वा असंखेज्जतिभागममहिए वा संखेज्जतिभागमभहिए वा संखेज्जगुणमन्महिए वा असंखेज्जगुणमभहिए वा अणंतगुणममहिए वा; णोलवणपज्जवेहि लोहियवण्णपज्जवेहि हालिद्दवण्णपज्जवेहि सुक्किलवण्णपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए; सुब्मिगंधपज्जवेहि दुन्भिगंधपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए; तित्तरसपज्जवेहि कडुयरसपज्जवेहि कसायरसपज्जवेहि प्रबिलरसपज्जवेहि महुररसपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए; कक्खडफासपज्जवेहि मउयफासपज्जवेहि गरुयफासपज्जवेहिं लहुयफासपज्जवेहिं सीयफासपज्जवेहि उसिणफासपज्जवेहि निद्धफासपज्जवेहि लुक्खफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए; प्रामिणिबोहियणाणपज्जवेहि सुयणाणपज्जवेहि प्रोहिणाणपज्जवेहि मतिअण्णाणपज्जवेहि सुयअण्णाणपज्जवेहि विभंगणाणपज्जवेहिं चक्खुदंसणपज्जवेहिं प्रचक्खुदंसणपज्जवेहि प्रोहिदसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते, एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति नेरइयाणं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता पज्जवा पण्णत्ता। [440 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने पर्याय (पर्यव) कहे गए हैं ? [440 उ.] गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे गए हैं / [प्र.] भगवन् ! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि नैरयिकों के पर्याय अनन्त हैं ? [उ.] गौतम ! एक नारक दूसरे नारक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है। प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है; अवगाहना की अपेक्षा से-कथंचित् (स्यात्) होन, कथंचित् तुल्य और कथंचित् अधिक (अभ्यधिक) है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है अथवा संख्यातभाग हीन है; या संख्यातगुणा हीन है, अथवा असंख्यातगुणा हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है या संख्यातभाग अधिक है; अथवा संख्यातगुणा अधिक या असंख्यातगुणा अधिक है। __ स्थिति की अपेक्षा से--(एक नारक दूसरे नारक से) कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन है; अथवा संख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण हीन है / अगर अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक या संख्यातभाग :अधिक है। अथवा संख्यातगुण अधिक या असंख्यातगुण अधिक है। कृष्णवर्ण-पर्यायों की अपेक्षा से-(एक नारक दूसरे नारक से) कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित अधिक है। यदि हीन है, तो अनन्त भाग हीन, असंख्यातभाग होन य या संख्यातभाग हीन होता है; अथवा संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुण हीन या अनन्तगुण हीन होता है। यदि अधिक है तो अनन्तभाग अधिक, असंख्यातभाग अधिक या संख्यातभाग अधिक होता है; अथवा संख्यातगुण अधिक, असंख्यातगुण अधिक या अनन्तगुण अधिक होता है। नीलवर्णपर्यायों, रक्तवर्णपर्यायों, पीतवर्णपर्यायों, हारिद्रवर्णपर्यायों और शुक्लवर्णपर्यायों की अपेक्षा से--(विचार किया जाए तो एक नारक, दूसरे नारक से) षट्स्थानपतित होनाधिक होता है। सुगन्धपर्यायों और दुर्गन्धपर्यायों की अपेक्षा से-(एक नारक दूसरे नारक से) षट्स्थानपतित हीनाधिक है। तिक्तरसपर्यायों, कटुरसपर्यायों, काषायरसपर्यायों, आम्लरसपर्यायों तथा मधुररसपर्यायों की अपेक्षा से-(एक नारक दूसरे नारक से) षट्स्थानपतित होनाधिक होता है / कर्कशस्पर्श-पर्यायों, मृदु-स्पर्शपर्यायों, गुरुस्पर्शपर्यायों, लस्पर्शपर्यायों, शीतस्पर्शपर्यायों, उष्णस्पर्शपर्यायों, स्निग्धस्पर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org