Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [347 . [427-3 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक के पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [427-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम तेईस सागरोपम की है। 428 [1] हेटिममज्झिमगेवेज्जदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई / __ [428-1 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-मध्यम अवेयक देवों की स्थिति कितने काल को कही गई है ? [428-1 उ.] गौतम ! जघन्य तेईस सागरोपम की और उत्कृष्ट चौवीस सागरोपम की है। [2] हेटिममज्झिमनपज्जत्तयदेवाणं घुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [428-2 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [428-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] हेदिममज्जिमगेवेज्जदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [428-3 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? - [428-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तेईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम चौवीस सागरोपम की है / 426. [1] हेट्ठिमउरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं चउवीसं सागरोक्माई, उक्कोसेणं पणुवीसं सागरोक्माई। [426-1 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरितन (सबसे नीचे के त्रिक में ऊपर वाले) ग्रेवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [426-1 उ.] गौतम ! जघन्य चौवीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की है। [2] हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं प्रपज्जत्ताणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [426-2 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org