Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्य स्थितिपद] [424-1 उ.] गौतम ! जघन्य उन्नीस सागरोपम की है और उत्कृष्ट बीस सागरोपम की है। [2] पाणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [424-2 प्र.] भगवन् ! प्राणतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? __ [424-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पाणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोंवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं वीसं सागरोंकमाई अंतोमुत्तूणाई। [424-3 प्र.] भगवन् ! प्राणतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [424-3 उ ] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त कम उन्नीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम बीस सागरोपम की है। 425. [1] आरणे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं वीसं सागरोबमाई, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई। [425-1 प्र.] भगवन ! पारणकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [425-1 उ.] गौतम ! जघन्य बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम की है। [2] प्रारणे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [425-2 प्र.] भगवन् ! पारणकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [425-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] प्रारणे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहणणं वीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [425-3 प्र.] भगवन् ! आरणकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [425-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुंहत कम इक्कीस सागरोपम की हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org