Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र 426. [1] अच्चुए कप्पे देवाणं पच्छा। गोंयमा ! जहण्णेणं एक्कवीसं सागरोंकमाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई। [426-1 प्र.] भगवन् ! अच्युतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [426-1 उ / गौतम ! जघन्य इक्कीस सागरोपम की और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की है। [2] अच्चुए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [426-2 प्र.] भगवन् ! अच्युतकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [426-2 उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [3] अच्चुते पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुतूणाई। [426-3 प्र.] भगवन् ! अच्युतकल्प में पर्याप्तकदेवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [426-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त कम इक्कीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम बाईस सागरोपम की है। 427. [1] हेटिमहेटिमगेवेज्जदेवाणं पुच्छा / गोयमा! जहणणं बावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेवीसं सागरोवमाइं / [427-1 प्र.) भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन (सबसे निचले अवेयकत्रिक में नीचे वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? 427-1 उ.] गौतम ! (सबसे निचली अवेयकत्रिक के नीचे के देवों की स्थिति) जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेईस सागरोपम की है / [2] हेट्ठिमहेटिमअपज्जत्तदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं / [427-2 प्र. भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक के अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की है? [427-2 उ.] मौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तमुहर्त की है। [3] हेटिमहेट्ठिमपज्जत्तदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तणाई। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org