Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 344 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [422-2 प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [422-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तमुहर्त की है। [3] सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं सत्तरस सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [422-3 प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही [422-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूत्त कम अठारह सागरोपम की है। 423. [1] प्राणए देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाई, उक्कोसेणं एकूणवीसं सागरोवमाइं। (423-1 प्र.] भगवन् ! आनतकल्प के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [423-1 उ.] गौतम ! जघन्य अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम की है। [2] प्राणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेणं वि अंतोमुत्तं / [423-2 प्र.] भगवन् ! अानतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [423-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] प्राणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोबमाई अंतोमुत्तूणाई। [423-3 प्र.] भगवन् ! प्रानतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [423-3 उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की है। 424. [1] पाणए कप्पे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं एगूणवीसं सागरोवमाइं, उक्कोंसेणं वीसं सागरोवमाइं। [424.1 प्र.] भगवन् ! प्राणतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org