Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 342] [प्रज्ञापनासून [418-3 प्र.] भगवन् ! माहेन्द्रकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही [418-3 उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम से कुछ अधिक की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम से कुछ अधिक की है / 416. [1] बंभलोए कप्पे देवाणं पुन्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई / [419-1 प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [419-1 उ.] गौतम ! जघन्य सात सागरोपम की और उत्कृष्ट दस सागरोपम की है। [2] बंभलोए अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [416.2 प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? __ [416-2 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य (स्थिति) भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट (स्थिति) भी अन्तर्मुहुर्त की है। [3] बंभलोए पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सत्त सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [419-3 प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प में पर्याप्त देवों को स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [419-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम की है। 420. [1] लंतए कप्पे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं दस सागरोवमाई, उक्कोसेणं चउदस सागरोवमाइं। [420-1 प्र.] भगवन् ! लान्तककल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [420-1 उ.] गौतम ! जघन्य दस सागरोपम की और उत्कृष्ट चौदह सागरोपम की है। [2] लंतए अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा / जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [420-2 प्र.] भगवन् ! लान्तककल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [420-2. उ.) गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भो अन्तर्मुहूर्त को है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org