Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ चतुर्थ स्थितिपद] [341 417. [1] सणंकुमारे कप्पे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दो सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई। (417-1 प्र.] भगवन् ! सनत्कुमारकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही [417-1 उ.] गौतम ! जघन्य दो सागरोपम की और उत्कृष्ट सात सागरोपम की है / [2] सणंकुमारे कप्पे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [417-2 प्र. भगवन् ! सनत्कुमारकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [417-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] सणंकुमारे कप्पे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दो सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई। ___ [417-3 प्र.] भगवन् ! सनत्कुमारकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [417-3 उ.गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की है। 418. [1] माहिंदे कप्पे देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्त साहियाइं सागरोवमाई। [418-1 प्र. भगवन् ! माहेन्द्रकल्प के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (418-1 उ.! गौतम! जघन्य दो सागरोपम से कुछ अधिक की और उत्कृष्ट सात सागरोपम से कुछ अधिक की है। [2] माहिदे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [418-2 प्र.] भगवन् ! माहेन्द्रकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [418-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] माहिदे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहणणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई, उक्कोसेणं सातिरेगाई सत्त सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org