Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [339 [413-2 उ.] गौतम ! उनको जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। [3] ईसाणे कप्पे पज्जताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिग्रोवमं अंतोमुत्तूर्ण, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [413-3 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प के पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही [413-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम कुछ अधिक एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम से कुछ अधिक की है। 414. [1] ईसाणे कप्पे देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिनोवमं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिनोवमाई। [414-1 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [414-1 उ.] गौतम ! जघन्य एक पल्योपम से कुछ अधिक को और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की है। [2] ईसाणे कप्पे देवीणं अपज्जत्तियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहत्तं / [414.2 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल को कही [414-2 उ.] गौतम जघन्य भो और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] ईसाणे कप्पे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिग्रोवमं अंतोमुत्तणं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिपोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [414-3 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही [414-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त कम पल्योपम से कुछ अधिक को और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम की है। 415. [1] ईसाणे कप्पे परिगहियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सातिरेगं पलिग्रोवमं, उक्कोसेणं णव पलिश्रोवमाइं। ___ [415-1 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में परिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [415-2 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम से कुछ अधिक को और उत्कृष्ट नो फ्ल्योपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org