Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 340] [प्रज्ञापनासूत्र [2] ईसाणे कप्पे परिग्गहियाणं अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / {415-2 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में परिगृहीता अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [415-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] ईसाणे कप्पे परिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिनोवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं नव पलिनोवमाई अंतोमुहुतूणाई। [415-3 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में परिगृहीता पर्याप्तक देवियों को स्थिति कितने काल की कही गई है ? [415-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम से कुछ अधिक की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम नौ पल्योपम की है। 416. [1] ईसाणे कप्पे अपरिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं सातिरेगं पलिप्रोवमं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिश्रोवमाई। [416-1 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [416-1 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम से कुछ अधिक की और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की है। [2] ईसाणे करपे अपरिग्गहियाणं अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [416-2 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में अपरिगृहीता अपर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [416-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] ईसाणे कप्पे अपरिग्गहियाणं देवीणं पज्जत्तियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिप्रोवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं पणपणं पलिअोवमाइं तोमुहुत्तूणाई। [416-3 प्र.) भगवन् ! ईशानकल्प में अपरिगृहीता पर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [416-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सातिरेक पल्योपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम पचपन पल्योपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org