________________ 324 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [386-2 प्र.) भगवन् ! अपर्याप्तक गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [386-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयगम्भवक्कंतियभयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुब्बकोडी अंतोमुत्तूणा। [386-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [386-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम पूर्वकोटि की है / 387. [1] खहयरपंचेंदितिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिनोवमस्स असंखेज्जइभागो। [387-1 प्र.] भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [387-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्येयभाग की है। [2] अपज्जत्तयखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेणं वि तोमुत्तं / [387-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [387-2 उ.) गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं प्रच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागो अतोमुत्तूगो। [387-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [387-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। 388. [1] सम्मुच्छिमखहयरपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावरिं वाससहस्साई / [388-1 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [388-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org