________________ चतुर्थ स्थितिपद ] [ 325 [2] अपज्जत्तयसम्मच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि तोमहत्तं / [388-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [388-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है, और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयसम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावत्तरि वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। [388-3 प्र.) भगवन् ! पर्याप्त सम्मूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? . / [388-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बहत्तर हजार वर्ष की है। 386. [1] गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिग्रोवमस्स असंखेज्जतिभागो। [386-1 प्र.] भगवन् ! गर्भज-खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? _ [589-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। [2] अपज्जत्तयगम्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अतोमुहत्तं / [386-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [386-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयगम्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागो तोहतूणो। [386-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [386-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। विवेचन—तियंच पंचेन्द्रिय जीवों को स्थिति का निरूपण--प्रस्तुत 18 सूत्रों (सू. 372 से 386) में तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीवों के विभिन्न प्रकारों की स्थिति का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org