Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [333 _[402-3 प्र.] भगवन् ! ग्रहविमान में पर्याप्तक देवियों की कितने काल तक की स्थिति कही है ? [402-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अर्द्ध पल्योपम की है। 403. [1] णक्खत्तविमाणे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णं चउभागपलिग्रोवम उक्कोसेणं अद्धपलिनोवमं / / [403-1 प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [403-1 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम के चतुर्थभाग की और उत्कृष्ट अर्द्ध पल्योपम की है। [2] णक्खत्तविमाणे अपज्जत्तदेवाणं पुच्छा / गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [403-2 3.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [403-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] पक्खत्तविमाणे पज्जत्तदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिप्रोक्मं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिनोवमं अंतोमुत्तणं / [403-3 प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [403-3 उ] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई पल्योपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अर्द्ध-पल्योपम की है / 404. [1] नक्खत्तविमाणे वेवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं चउभागपलिप्रोवम, उक्कोसेणं सातिरेगं चउभागपलिओवमं / [404-1 प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [404-1 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम का चतुर्थभाग है और उत्कृष्ट कुछ अधिक चौथाई पल्योपम की है। [2] पक्खत्तविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं / [404-2 प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में अपर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org