Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 332] [ प्रज्ञापनासून [400-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पांच सौ वर्ष अधिक अर्द्ध पल्योपम की है। 401. [1] गह विमाणे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिग्रोवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं / [401-1 प्र.] भगवन् ! ग्रहविमान में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [401-1 उ.] गौतम ! जघन्य पत्योपम के चौथाई भाग की है और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। [2] गहविमाणे प्रपज्जत्तदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [401.2 प्र.] भगवन् ! ग्रहविमान में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [401-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] गहविमाणे पज्जत्तदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं चउभागपलिप्रोवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पलिग्रोवमं अंतोमुत्तूणं / [401-3 प्र.] भगवन् ! ग्रहविमान में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई [401-3 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की है। 402. [1] गहविमाणे देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहष्णेणं चउभागपलिग्रोवम, उक्कोसेणं प्रद्धपलिनोवमं / [402-1 प्र.] भगवन् ! ग्रहविमान में देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [402-1 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम के चतुर्थभाग की और उत्कृष्ट अर्द्धपल्योपम की The [2] गहविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [402-2 प्र.] भगवन् ! ग्रह विमान में कितने काल की स्थिति अपर्याप्त देवियों की कही [402-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तमुहूर्त की है। [3] पज्जत्तियाणं गहविमाणे देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहष्णेणं चउभागपलिप्रोवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिग्रोवमं अंतोमुत्तूणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org