Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 330 ] [प्रज्ञापनासूत्र [397-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है।' 398. [1] चंदविमाणे णं भंते ! देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण चउभागपलिग्रोवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिनोवमं पण्णासाए वाससहस्से. हिमन्भहियं / [398-1 प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [398-1 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग है और उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है। [2] चंदविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [398-2 प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [398-2 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] चंदविमाणे णं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं चउभागपलिनोवमं अंतोमुत्तणं, उक्कोसेणं अद्धपलिनोवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं अंतोमुत्तूणं / . [398-3 प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [398-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है / 396. [1] सूरविमाणे णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहणणं चउभागपलिनोवमं, उक्कोसेणं पलिप्रोवमं वाससहस्सममहिय / [399-1 प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? 1. चन्द्रविमान में चन्द्रमा उत्पन्न होता है, इसलिए वह चन्द्रविमान कहलाता है। चन्द्रविमान में चन्द्र के अतिरिक्त सभी उसके परिवारभूत देव होते हैं। उन परिवारभूत देवों की जघन्य स्थिति पल्योषम का चतुर्थभाग और उत्कृष्ट किन्हीं इन्द्र, सामानिक आदि की लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। चन्द्रदेव की उत्कृष्ट स्थिति तो मूलपाठ में उक्त है ही। इसी प्रकार सूर्यादि के विमानों के विषय में समझ लेना चाहिए। -प्रज्ञापना. म. वत्ति, पत्रांक 175 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org