Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 328] [प्रज्ञापनासून [3] पज्जत्तियाणं भंते ! वाणमंतरीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं अद्धपलिप्रोवमं अंतोमुहुत्तूणं / [394-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [394-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अर्द्ध पल्योपम की है। विवेचन-वाणव्यन्तर देव-देवियों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 393-394) में वाणव्यन्तर देवों तथा देवियों (ौधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक) की स्थिति का निरूपण किया गया है। ज्योतिषक देवों की स्थिति-प्ररूपरणा 365. [1] जोइसियाणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहणेणं पलिप्रोवमट्ठभागो, उक्कोसेणं पलिप्रोवमं वाससतसहस्समभहिय / [365-1 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [395-1 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य स्थिति पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं / [395-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [395-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं पलिप्रोवमट्ठभागो अंतोमुत्तूणो, उक्कोसेणं पलिनोवमं वाससतसहस्समहियं अंतोमुत्तूणं। [395-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त ज्योतिष्क देवों को स्थिति कितने काल तक की कही [395-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। 366. [1] जोइसिणोणं भंते ! देवोणं केवतियं कालं ठितो पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं पलिग्रोवमट्ठभागो, उक्कोसेणं अद्धपलिपोवमं पण्णासवाससहस्समहिय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org