________________ 326] [प्रज्ञापनासूत्र मनुष्यों की स्थिति को प्ररूपरणा--- 360. [1] मणुस्साणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिमोवमाई। [360-1 प्र.] भगवन् ! मनुष्यों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? [360-1 उ.] गौतम ! (मनुष्यों की स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तगमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं / [360-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति कितने काल की है ? [360-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिग्रोवमाई तोमुत्तूणाई। [360-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [390-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। 361. सम्मुच्छिममणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि तोमुत्तं / [361 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [391 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। 392. [1] गन्भवतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णणं अतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिम्रोवमाई। [392-1 प्र. भगवन् ! गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [362-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। [2] अपज्जतयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेण वि उपकोसेण वि तोमुहुत्तं / [392-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [392-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। . [3] पज्जत्तयगन्भवतियमणुस्साणं पुच्छा / गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिप्रोवमाई तोमुत्तूणाई। [362-3 प्र] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org