Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [329 [396-1 प्र.] भगवन्! ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [396-1 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है। [2] अपज्जत्तियाणं जोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उपकोसेण वि अंतोमुहत्तं / [396-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की कही [396-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जतियाणं जोइसियाणं पुच्छा / गोयमा ! जहणेणं पलिनोवमट्ठभागो अंतोमुत्तूणो, उक्कोसेणं अद्धिपलिनोवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अमहियं अंतोमुहुत्तूणं / [396-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त ज्योतिष्क देवियों को स्थिति कितने काल की कही गई है ? [396-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम फल्योपम के आठवें भाग की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है। 367. [1] चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं च उभागपलिग्रोवम, उक्कोसेणं पलिमोबमं वाससतसहस्सममहियं / [397-1 प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में देवों की स्थिति कितने काल की है ? [397-1 उ.] गौतम ! जघन्य पल्योपम का चौथाई भाग है, उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। [2] चंदविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [397-2 प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही [397-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] चंदविमाणे णं पज्जत्तयाणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिप्रोवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं पलिप्रोवमं वाससतसहस्समन्भहियं अंतोमुत्तूणं। [397-3 प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितनी कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org