________________ चतुर्थ स्थितिपद ] [ 327 [392-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। विवेचन--मनुष्यों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 360 से 392 तक) में सामान्य, अपर्याप्तक, पर्याप्तक, सम्मूच्छिम तथा गर्भज (औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक) मनुष्यों की स्थिति का निरूपण किया गया है / वारणव्यंतर देवों की स्थिति-प्ररूपरणा 363. [1] वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवतिय कालं ठिती पण्णता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पलिप्रोवमं / [393-1 प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [393-1 उ.] गौतम ! (वाणव्यन्तर देवों की स्थिति) जघन्य दस हजार वर्ष की है, उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहाणेण वि उक्कोसेण बि अंतोमुहत्तं / [393-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [393-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयाणं वाणमंतराणं देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं पलिश्रोवमं अंतोमुहुतणं / [393-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वाणव्यन्तर देवों को स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [393-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की है। 364. [1] वाणमंतरीणं भंते ! देवीणं केवतिय कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं प्रद्धपलिप्रोवमं / [394-1 प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [394-1 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अर्द्ध पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तियाणं भंते ! वाणमंतरोणं देवीणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [394-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल को कही [394-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org