________________ चतुर्थ स्थितिपद [335 [2] ताराविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं / [406-2 प्र.] भगवन् ! ताराविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [406-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] ताराविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अट्ठभागपलिनोवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिनोवमं अंतोमहत्तणं। [406-3 प्र.] भगवन् ! ताराविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (406.3 उ.] गौतम ! जघन्यतः अन्तमुहर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की है और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक है। विवेचन-ज्योतिष्क देव-देवियों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत बारह सूत्रों (सू. 395 से 406 तक) में ज्योतिष्क देवों और देवियों के (औधिक, अपर्याप्तकों एवं पर्याप्तकों) की तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा के विमानों के देव-देवियों (ौघिक, अपर्याप्तकों के और पर्याप्तकों) की स्थिति का निरूपण किया गया है / वैमानिक देवों की स्थिति की प्ररूपरणा 407. [1] वेमाणियाणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं पलिम्रोवम, उक्कोसेगं तेत्तीसं सागरोवमाई। [407-1 प्र.] भगवन् ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [407-1 उ.] गौतम ! (वैमानिक देवों की स्थिति) जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट ततीस सागरोपम की है। [2] अपज्जत्तयवेमाणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [407-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक वैमानिक देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [407-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] पज्जत्तयवेमाणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं पलिनोवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमहत्तूणाई / [407-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [407-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त कम एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org