________________ चतुर्य स्थितिपद ] [323 [3] पज्जतयभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं प्रतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडो अतोमुत्तूणा / [384-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [384-3 7.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। 385. [1] सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अतोमुहुँतं, उक्कोसेणं बायांलीसं वाससहस्साई / ___[385-1 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [385-1 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है तथा उत्कृष्ट स्थिति बयालीस हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तयसम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि तोमुहत्तं / [385-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक सम्मूच्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक ___ जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [385-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयसम्मच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा / गोयमा ! जहणणं अतोमुत्तं, उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई। [385-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक सम्मूच्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? 6385-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बयालीस हजार वर्ष की है। 386. [1] गम्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। [386-1 प्र.] भगवन् ! गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [386-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है / [2] अपज्जयगम्भवक्कतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्सजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org