________________ 322]. [ प्रज्ञापनासूत्र [382-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक सम्मूच्छिम उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों . की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [382-3 उ.] गौतम ! उनकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तिरेपन हजार वर्ष की है। 383. [1] गम्भवतिय उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। / [383.1 प्र.] भगवन् ! गर्भज उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [383-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पूर्वकोटि (करोड़पूर्व) की है। [2] अपज्जत्तगगम्भवक्कैतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि तोमुहत्तं / [383-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भज उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [383-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] पज्जत्तगगम्भवक्फंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं तोमहत्तं, उक्कोसेणं पुव्यकोडी अंतोमुहुत्तूणा / [383-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भज उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। 384. [1] भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। [384-1 प्र.] भगवन् ! भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [384-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पूर्वकोटी की है / [2] अपज्जत्तयभयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [384-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? 384-2 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org