________________ 320] [ प्रज्ञापनासून [379-1 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [379-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की एवं उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तयसम्मच्छिमच उपयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुछा। गोयमा ! जहाणेण वि उक्कोसेण वि अतोमुहुत्तं / [376-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [379-2 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति भी और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं चउरासीई वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। [379-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मु हत्त की है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम चौरासी हजार वर्ष की है। 380. [1] गम्भवक्कतियचउपयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिपोवमाई। [380-1 प्र.] भगवन् ! गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों को स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [380-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तयगम्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [380-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जोवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [380-2 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूत की है। [3] पज्जत्तगगमवक्कंतियचउपयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिप्रोवमाइं अंतोमुहुतणाई। [380-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [380-3 उ.] गौतम ! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org