Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद ] [319 [2] अपज्जत्तयगम्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [377-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [377-2 उ.] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त की है। [3] पज्जत्तयगम्भवक्कंतियजलयरपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुतूणा। [377-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? _ [377-3 उ.] गौतम ! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की एवं उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। 378. [1] चउप्पयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। [378.1 प्र.] भगवन् ! चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? {378.1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है / [2] अपज्जत्तयचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ! गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि तोमुत्तं / [378-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [378-2 उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूत्त की है। [3] पज्जत्तयचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिग्रोवमाई तोमहुत्तूणाई। [378-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [378-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। 376. [1] सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं चउरासीई वाससहस्साई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org