Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [317 [3] पज्जत्तयसम्मच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा / गोयमा! जहणणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडो अतोमुत्तूण।। [373-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [373-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की है, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है / 374. [1] गम्भवतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्त, उक्कोसेणं तिणि पलिप्रोवमाई / [374-1 प्र.] भगवन् ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [374-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। [2] अपज्जत्तयगम्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अतोमुहत्तं / / [374-2 प्र. भगवन् ! अपर्याप्त गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [374-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। [3] पज्जत्तयगम्भवषकतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं प्रतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिषिण पलिश्रोवमाइं अतोमहत्तूणाई। _ [374-3 प्र.] भगवन् ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? [374-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की कही गई है। 375. [1] जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी।। [375-1 प्र.] भगवन् ! जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [375-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है / [2] अपज्जत्तयजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [375-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की कितनी स्थिति कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org