Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 316]] [प्रज्ञापनासूत्र विवेचन-विकलेन्द्रियों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 366 से 371 तक) में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है / पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 372. [1] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिम्रोवमाई। [372-1 प्र.) भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [372-1 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। [2] अपज्जत्तयचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वितोमुहुतं / [372-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [372-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जतगपंचेवियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं प्रतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिप्रोवमाई तोमुत्तूणाई। [372-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [372-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। 373. [1] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। [373-1 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [373-1 उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि (करोड़ पूर्व) की है। [2] अपज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहणेण वि उक्कोसेण विनंतोमुहत्तं / [373-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [373-2 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org