Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद [315 त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपरणा 370. [1] तेइंदियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणवरुणं रातिदियाई। [370-1 प्र.] भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [370-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट उनपचास रात्रिदिन की है। [2] अपज्जत्ततेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [370-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त श्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [370-2 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्ततेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं एगूणवण्णं रातिदियाइं अंतोमुत्तणाई। __ [370-2 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [370-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उनपचास रात्रिदिन की है। चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपरणा 371. [1] चरिदियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा / [371-1 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [371-1 उ.] गौतम ! इनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति छह मास की है। [2] अपज्जत्तयचउरिदियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [371-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [371-2 उ.] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयचरिदियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा तोमुत्तूणा। [371-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [371-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छह मास की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org