Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [313 [365-3 उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त कम तीन हजार वर्ष की है। 366. [1] वणप्फइकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठितो पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साई। {366-1 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [366-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तवणप्फतिकाइयाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [366-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [366-2 उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयवणप्फइकाइयाणं पुच्छा / गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई / [366-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीवों को स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [366-3 उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है। 367. सुहमवणप्फइकाइयाणं प्रोहियाणं प्रपज्जताणं पज्जत्ताण य जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [367] सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के प्रौधिक, अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त की है। 368. [1] बादरवणप्फइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं। [368-1 प्र.] भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [368-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तवादरवणप्फइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org