Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [ 311 . [362-1 प्र.] भगवन् ! बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [362-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन रात्रिदिन की है। [2] अपज्जत्तयबादरतेउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / __ [362-2 प्र.] भगवन् अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [362-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और और उत्कृष्ट भी अन्तर्मु हत की है। [3] पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिदियाई अंतोमुहत्तूणाई। [362-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [362-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन रात्रिदिन की है। 363. [1] वाउकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिणि वाससहस्साई। [363-1 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [363-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तयवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [363-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [363-2 उ.] गौतम ! (उनकी) जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहृत्तं, उक्कोसेणं तिणि वाससहस्साई अंतोमहत्तूणाई। _ [363-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? - [366-3 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन हजार वर्ष की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org