Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्पितिपद ] [ 309 [356-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष की है। 357. [1] पाउकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठितो पण्णता ? मोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई। [357-1 प्र.] भगवन् ! अप्कायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? [357-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तय ग्राउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [357-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त अप्कायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही [357-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तत्त वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। [357-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [357-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की है। 358. सुहमआउकाइयाणं श्रोहियाणं प्रपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य जहा सुहमपुढविकाइयाणं (सु. 355) तहा माणितव्वं / [358] सूक्ष्म अप्कायिकों के औधिक (सामान्य), अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जैसी सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की (सू. 355 में) कही, वैसी कहनी चाहिए / 359. [1] बादरग्राउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई। [359-1 प्र.] भगवन् ! बादर अप्कायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [359-1 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तयबादरग्राउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [359-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ,