Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद [ 307 _[352-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सुपर्णकुमार देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [352-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम देशोन पल्योपम की है। 353. एवं एएणं अभिलावेणं प्रोहिय-अपज्जत्त-पज्जत्तसुत्तत्तयं देवाण य देवीण य णेयव्वं जाव थणियकुमाराणं जहा णागकुमाराणं (सु. 346) / [353] इस प्रकार इस अभिलाप से (इसी कथन के अनुसार) औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक के तीन-तीन सूत्र (आगे के भवनवासी) देवों और देवियों के विषय में, यावत् स्तनितकुमार तक नागकुमारों (के कथन) की तरह समझ लेना चाहिए। विवेचन–सामान्य देव-देवियों तथा भवनवासी देव-देवियों की स्थिति का निरूपण--प्रस्तुत ग्यारह सूत्रों (सू. 343 से 353 तक) में सामान्य देव-देवियों, औधिक भवनवासी देव-देवियों तथा असुरकुमार से स्तनितकुमार देव-देवियों (पर्याप्तक-अपर्याप्तकसहित) तक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है। एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपरणा--- 354. [1] पुढविकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई। [354-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति बताई गई है ? [354-1 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है। [2] अपज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं / [354-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति बताई [354-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते ! केवतिय कालं ठितो पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहृत्तं, उक्कोसेणं बावोसं वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। [354-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? [354-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org