________________ चतुर्थ स्थितिपद] [321 - 381. [1] उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। [381-1 प्र.] भगवन् ! उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों को स्थिति कितने काल की कही गई है ? [381-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पूर्वकोटि को है / [2] अपज्जत्तयउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वितोमुत्तं / [381-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जोवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [381-2 उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तगउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा / गोणमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुधकोडो अतोमुहुत्तूणा। [481-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [381-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। 382. [1] सम्मुच्छिमसामण्णपुच्छा कायव्वा / गोयमा ! जहन्नेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेवष्णं वाससहस्साई / [382-1 प्र.] भगवन् ! सामान्य सम्मूच्छिम उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [382-1 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तिरेपन हजार वर्ष की है। [2] सम्मुच्छिमअपज्जत्तगउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि प्रतोमुहत्तं / [382-2 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम अपर्याप्तक उरःपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [382-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त को है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तगसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org