Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद ] [ 256 प्रदेशों से सर्वपर्याय अनन्तगुणे हैं, क्योंकि एक-एक आकाशप्रदेश में अनन्त-अनन्त अगुरुलघुपर्याय होते हैं।' चौबीसवां क्षेत्रद्वार : क्षेत्र की अपेक्षा से ऊर्ध्वलोकादिगत विविध जीवों का अल्पबहुत्व 276. खेत्ताणुवाएणं सध्वत्थोवा जीवा उड्डलोयतिरियलोए 1, अहेलोयतिरियलोए विसेसा. हिया 2, तिरियलोए असंखेज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखेज्जगुणा 4, उडलोए असंखेज्जगुणा 5, अहेलोए विसेसाहिया 6 // [276] क्षेत्र की अपेक्षा से 1. सबसे कम जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोक में हैं, 2. (उनसे) अधोलोक-तिर्यग्लोक में विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणे हैं, 4. (उनकी अपेक्षा) त्रैलोक्य में (तीनों लोकों में अर्थात् तीनों लोकों का स्पर्श करने वाले) असंख्यातगुणे हैं, 5. (उनकी अपेक्षा) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, 6. (उनसे भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं / 277. खेत्ताणुवाएणं सम्वत्थोवा नेरइया तेलोक्के 1, अहेलोकतिरियलोए असंखेज्जगुणा 2, अहेलोए असंखेज्जगुणा 3 / / [277] क्षेत्र की अपेक्षा से 1. सबसे थोड़े नैरयिकजीव त्रैलोक्य में हैं, 2. (उनसे) अधोलोकतिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, 3. (और उनसे भी) अधोलोक में असंख्यातगुणे हैं / 278. खेत्ताणुवाएणं सम्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया उड्डलोयतिरियलोए 1, पहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया 2, तिरियलोए असंखेज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखेज्जगुणा 4, उड्डलोए असंखेज्जगुणा 5, अधेलोए विसेसाहिया 6 / [278] क्षेत्र की अपेक्षा से 1. सबसे अल्प तियंचयोनिक (पुरुष) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनसे) विशेषाधिक अधोलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 3. (उनसे) तिर्यकलोक में असंख्यातगुणे हैं, 4. (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, 5. (उनकी अपेक्षा) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, 6. (और उनसे भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। ___ 276. खेत्ताणुवाएणं सम्वत्थोवानो तिरिक्खजोणिणीनो उडलोए 1, उड्डलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणाप्रो 2, तेलोक्के संखेज्जगुणामो 3, अधेलोयतिरियलोए संखेज्जगुणानो 4, अधेलोए संखेज्जगुणानो 5, तिरियलोए संखेज्जगुणानो 6 / [276] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे कम तिर्यचिनी (तिर्यचस्त्री) ऊर्ध्वलोक में हैं, 2. (उनसे) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणी हैं, 3. (उनसे) त्रैलोक्य में संख्यातगुणी हैं, 4. (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं, 5. (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणी हैं, 6. (और उनसे भी) तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं। 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 143 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org