Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्य स्थितिपद ] [ 297 [336-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भो अन्तर्मुहूर्त को कही गई है। [3] पज्जत्तयरयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठितो पण्णता ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुतूणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तूणं / [336-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक-रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [336-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष को और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की कही गई है। 337. [1] सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठितो पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं एगं सागरोवमं, उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाई। [337-1 प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [337-1 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की कही गई है। [2] अपज्जत्तयसक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [337-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों को कितने काल की स्थिति कही गई है ? [337-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयसक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेगं तिणि सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई। [337-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक-शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [337-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की (कही गई) है / 338. [1] वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं तिणि सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई। [338-1 प्र.] भगवन् ! वालुकाप्रभापृथ्वी के नरयिकों की स्थिति कितने काल को कही [338-1 उ.] गौतम ! जघन्य तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट सात सागरोपम को है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org