Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 302] [प्रज्ञापनासूत्र [344-1 प्र.] भगवन् ! देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? _ [344-1 उ.] गौतम ! (देवियों की स्थिति) जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तगदेवीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [344-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [343-2 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयदेवीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमहत्तणाई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिग्रोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [344-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [344-3 उ.] गौतम ! (पर्याप्तक देवियों की स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त कम पचपन पल्योपम को है। विवेचन-देवों और देवियों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 343-344). द्वारा देवों, देवियों और उनके अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति का निरूपण किया गया है। निष्कर्ष-देवों की अपेक्षा देवियों की स्थिति (आयु) कम है, यह इस पाठ पर से फलित होता है। भवनवासियों की स्थिति की प्ररूपरणा 345. [1] भवणवासीणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं / [345-1 प्र.] भगवन् ! भवनवासी देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [345-1 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम की है। * [2] अपज्जत्तयभवणवासीणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहपणेण वि अंतोमुत्तं, उपकोसेण वि अंतोमहत्तं / [345-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक भवनवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही [345-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org