________________ 300] [प्रज्ञापनासूत्र [341-3 उ.] गौतम जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की है / 342. [1] अधेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहष्णेणं बावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। [342-1 प्र.] भगवन् ! अधःसप्तम (तमस्तमःप्रभा) पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [342-1 उ.] गौतम ! जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट लेतीस सागरोपम की (कही गई) है। [2] अपज्जत्तयअधेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पणत्ता? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / |342-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक-अधःसप्तम(तमस्तमःप्रभा)पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [342-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयअधेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवतिय कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहृत्तूणाई। [342-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक-अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [342-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है। विवेचन--नरयिकों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. 335 से 342 तक) में सामान्य नारकों, सात नरकभूमियों में रहने वाले नारकों और फिर उनके अपर्याप्तकों तथा पर्याप्तकों की स्थिति पृथक्-पृथक् प्ररूपित की गई है / अपर्याप्तदशा और पर्याप्तदशा-अन्य संसारी जीवों की तरह नैरयिकों की भी दो दशाएँ हैं-अपर्याप्तदशा और पर्याप्तदशा। अपर्याप्तदशा दो प्रकार से होती है---लब्धि से और करण से / नारक, देव तथा असंख्यातवर्षों की आयु वाले तिर्यञ्च एवं मनुष्य करण से ही अपर्याप्त होते हैं, लब्धि से नहीं / ये उपपात काल में ही कुछ काल तक करण से अपर्याप्त समझने चाहिए। शेष तिर्यञ्च या मनुष्य लब्धि और करण-दोनों प्रकार से उपपातकाल में अपर्याप्तक हो सकते हैं / यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपर्याप्तक अवस्था जघन्यत: और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त तक ही रहती है। उसके बाद पर्याप्तदशा आ जाती है। इसलिए सामान्य स्थिति में से अपर्याप्तदशा की अन्तमुहर्त की स्थिति को कम कर देने पर शेष स्थिति पर्याप्तकों की रह जाती है। जैसे-प्रथम नरकपृथ्वी में सामान्य स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की है। इसमें से अपर्याप्तदशा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org