Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 298] [प्रज्ञापनासूब [2] अपज्जत्तयवालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं / [338-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक-बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [338-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयवालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहष्णेणं तिणि सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [338-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक-वालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [338-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की है। 336. [1] पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठितो पण्णत्ता! गोयमा ! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई। [336-1 प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [336-1 उ.] गौतम ! जघन्य सात सागरोपम की और उत्कृष्ट दस सागरोपम की है। [2] अपज्जत्तयपंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [336-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक-पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [339-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहुर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयपंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहृत्तूणाई। [339-3 प्र.] भगवन् पर्याप्तक-पंकप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [339-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम दस सागरोपम की है / 340. [1] धूमपभापुढविने रइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहणणं दस सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org