Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 304 ] [ प्रज्ञापनासूत्र ___[347-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [347-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है, और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयअसुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं अंतोमुत्तूणं / - [347-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [347-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम कुछ अधिक सागरोपम की है। 348. [1] असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उपकोसेणं अद्धपंचमाइं पलिपोवमाई। [348-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? _ [348-1 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम की है। [2] अपज्जत्तियाणं असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [348-2 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [348-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त को है। [3] पज्जत्तियाणं असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाई पलिग्रोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [348-3 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [348-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम साढ़े चार पल्योपम की है। 346. [1] णागकुमाराणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा! जहणणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं दो पलिग्रोवमाई देसणाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org