________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापर] [257 इसका समाधान यह है कि द्रव्य की दृष्टि से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध सबसे स्वल्प हैं, परमाणु आदि अत्यधिक हैं / आगे प्रज्ञापनासूत्र में कहा जाएगा'-"सबसे कम द्रव्य की दृष्टि से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध हैं, द्रव्यदृष्टि से परमाणुपुद्गल अनन्तगुणे हैं। द्रव्यदृष्टि से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध संख्यातगुणे हैं और असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध असंख्यातगुणे हैं / " इस पाठ के अनुसार जब समस्त पुद्गलास्तिकाय का प्रदेशदृष्टि से चिन्तन किया जाता है, तब अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अत्यन्त कम और परमाणु अत्यधिक तथा पृथक्-पृथक् द्रव्य होने से असंख्यप्रदेशी स्कन्ध परमाणुओं की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं / अतः प्रदेशों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय असंख्यातगुणा ही हो सकता है, अनन्तगुणा नहीं। कालद्रव्य के विषय में द्रव्य और प्रदेशों के अल्पबहुत्व को लेकर प्रश्न ही नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि काल के प्रदेश नहीं होते / काल सिर्फ द्रव्य ही है, उसके प्रदेश नहीं होते, क्योंकि जब परमाणु परस्पर सापेक्ष (एकमेक) होकर परिणत होते हैं, तभी उनका समूह स्कन्ध कहलाता है और उसके अवयव प्रदेश कहलाते हैं। यदि वे परमाणु परस्पर निरपेक्ष हों तो उनके समूह को स्कन्ध नहीं कह सकते / प्रद्धा-समय (काल) परस्पर निरपेक्ष हैं, स्कन्ध के समान परस्पर (पिडित) सापेक्ष द्रव्य नहीं हैं / जब वर्तमान समय होता है तो उसके आगे-पीछे के समय का अभाव होता है / अतएव उनमें स्कन्धरूप परिणाम का अभाव है। अतएव अद्धा-समय (कालद्रव्य) के प्रदेश नहीं होते। धर्मास्तिकायादि का एक साथ द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा से प्रापबहत्व—सबसे कम द्रव्यदृष्टि से धर्मास्तिकाय आदि तीनों द्रव्य हैं, क्योंकि तीनों एक-एक द्रव्य हैं। इनकी अपेक्षा प्रदेशों की अपेक्षा से धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय दोनों तुल्य व असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि दोनों के प्रदेश असंख्यात-असंख्यात हैं। इन दोनों से जीवास्तिकाय द्रव्यदृष्टि से अनन्तगुणा है, क्योंकि जीवद्रव्य अनन्त हैं। उनसे जीवास्तिकाय प्रदेशदृष्टि से असंख्यातगुणा है, क्योंकि प्रत्येक जीव के असंख्यातअसंख्यात प्रदेश होते हैं। प्रदेशरूप जीवास्तिकाय से द्रव्यरूप पुद्गलास्तिकाय अनन्तगुणा है, क्योंकि जीव के एक-एक प्रदेश के साथ अनन्त-अनन्त कर्मपुद्गलद्रव्य सम्बद्ध हैं। द्रव्यरूप पुद्गलास्तिकाय से प्रदेशरूप पुद्गलास्तिकाय असंख्यातगुणा है / इसका कारण पहले बताया जा चुका है। प्रदेशरूप पुद्गलास्तिकाय की अपेक्षा अद्धा-समय (काल) द्रव्य और प्रदेश की दृष्टि से पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार अनन्तगुणा है, इसकी अपेक्षा अाकाशास्तिकाय प्रदेशों की दृष्टि से अनन्तगुणा है, क्योंकि आकाशास्तिकाय सभी दिशाओं में अनन्त है, उसकी कहीं सीमा नहीं है; जबकि प्रद्धा-समय (काल) सिर्फ मनुष्यक्षेत्र में होता है। बाईसवाँ चरमद्वार : चरम और अचरम जीवों का अल्पबहुत्व 274. एतेसि णं भंते ! जीवाणं चरिमाणं प्रचरिमाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्योवा जीवा अचरिमा ?, चरिमा अणंतगुणा 2 / दारं 22 // 'सम्वत्योवा अणंतपएसिया खंधा दन्वयाए, परमाणुपोग्गला दव्वट्टयाए अगंतगुणा, संखेज्जपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसिया खंधा दम्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा / ' -प्रज्ञापना: पद, 3 सु. 330 2. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 142-143 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org