________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] [ 279 दोनों में अनाकारोपयोग पाया जाता है। अनाकारोपयुक्तों की अपेक्षा साकारोपयुक्त जीव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि अनाकारोपयोग की अपेक्षा साकारोपयोग का काल अधिक है / साकारोपयुक्त जीवों की अपेक्षा नो-इन्द्रियोपयोग-उपयुक्त जीव विशेषाधिक हैं; क्योंकि इनमें नो-इन्द्रियोपयोग और अनाकारोपयोग वाले दोनों सम्मिलित हैं। इनकी अपेक्षा असातावेदक विशेषाधिक हैं, क्योंकि इन्द्रियोपयोगयुक्त जीव भी असातावेदक होते हैं / असातावेदकों से असमवहत (समुद्घात न किये हुए) विशेषाधिक होते हैं; क्योंकि सातावेदक भी असमवहत होते हैं, इस कारण असमवहतों की विशेषाधिकता है / इनकी अपेक्षा जागृत विशेषाधिक हैं, क्योंकि कतिपय समवहत जीव भी जागृत होते हैं। जागृतों की अपेक्षा पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, क्योंकि कतिपय सुप्तजीव भी पर्याप्तक हैं। बहुत-से जीव ऐसे भी हैं, जो जागृत न होते हुए-अर्थात् सुप्त होते हुए भी पर्याप्तक हैं। जो जागृत हैं, वे तो पर्याप्त हो होते हैं, किन्तु सुप्त जीवों के विषय में ऐसा नियम नहीं है / पर्याप्तक जीवों की अपेक्षा आयुकर्म के प्रबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि अपर्याप्तक भी आयुकर्म के प्रबन्धक होते हैं।' प्रत्येक युगल का अल्पबहुत्व-(१) आयुष्यकर्म के बन्धक कम हैं, प्रबन्धक उनसे असंख्यातगुणे अधिक हैं; पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार बन्धकाल की अपेक्षा प्रबन्धकाल अधिक है / बन्धकाल सिर्फ तीसरा भाग और वह भी अन्तर्मुहुर्त मात्र होता है। इस कारण बन्धकों की अपेक्षा प्रबन्धक संख्यातगुणे अधिक हैं / (2) अपर्याप्तक जीव अल्प हैं, पर्याप्तक उनसे संख्यातगुणे अधिक हैं; यह कथन सूक्ष्म जीवों की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि सूक्ष्म जीवों में बाह्य व्याघात न होने मे बहसंख्यक जीवों की निष्पत्ति (उत्पत्ति) और अल्प जीवों की अनिष्पत्ति (अनुत्पत्ति) होती है। (3) सुप्त जीव कम हैं, जागृत जीव उनकी अपेक्षा संख्यातगुणे अधिक हैं / यह कथन सूक्ष्म एकेन्द्रियों की अपेक्षा से समझना चाहिए; क्योंकि अपर्याप्त जीव तो सुप्त ही पाए जाते हैं, जबकि पर्याप्त जागृत भी होते हैं / (4) समवहत जीव थोड़े हैं, उनकी अपेक्षा असमवहत जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं / यहाँ मारणान्तिक समुद्घात से समवहत ही लिये गए हैं और मारणान्तिक समुद्धात मरणकाल में ही होता है, शेष समय में नहीं; वह भी सब जीव नहीं करते / अतएव समवहत थोड़े ही कहे गए हैं; असमवहत अधिक, क्योंकि उनका जीवनकाल अधिक है। (5) इसी प्रकार सातावेदक जीव कम हैं, क्योंकि साधारणशरीरी जीव बहुत हैं और प्रत्येकशरीरी अल्प हैं। अधिकांश साधारणशरीरी जीव असातावेदक होते हैं, इस कारण सातावेदक कम हैं। प्रत्येकशरीरी जीवों में तो सातावेदकों की बहुलता है और असातावेदकों की अल्पता है। अतएव सातावेदक कम और असातावेदक उनसे संख्यातगुणे अधिक हैं। (6) इन्द्रियोपयुक्त कम है, नो-इन्द्रियोपयुक्त संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि इन्द्रियोपयोग तो वर्तमानविषयक ही होता है, इस कारण उसका काल स्वल्प है। नो-इन्द्रियोपयोग अतीत-अनागतकाल-विषयक भी होता है। अत: उसका समय बहुत है, इस कारण नो-इन्द्रियोपयुक्त संख्यातगुणे कहे गए हैं। (7) अनाकार (दर्शन) उपयोग का काल अल्प होने से अनाकारोपयोग वाले अल्प हैं, उनकी अपेक्षा साकारोपयोग वाले का काल संख्यातगणा होने से साकारोपयोग वाले संख्यातगुणे अधिक हैं। 1. प्रज्ञापनासूत्र, मलय. वृत्ति, पत्रांक 156-157 2. प्रज्ञापनासूत्र, मलय, वृत्ति, पत्रांक 156 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org