Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 266] [ प्रज्ञापनासूत्र 307. खताणुवाएणं सम्वत्थोवा पुढविकाइया उड्ढलोयतिरियलोए 1, अधो लोयतिरियलोए विसेसाहिया 2, तिरियलोए प्रसंखज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखज्जगुणा 4, उड्ढलोए असंखज्जगुणा 5, अधेलोए विसेसाहिया 6 / [307] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनकी अपेक्षा) अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, 4. (उनकी अपेक्षा) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, 5. (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, और 6. (उनकी अपेक्षा भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। 308. खेत्ताणुवाएणं सबथोवा पुढविकाइया अपज्जत्तया उड्ढलोयतिरियलोए 1, अधोलोयतिरियलोए विसेसाधिया 2, तिरियलोए असंखज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखज्जगुणा 4, उड्ढलोए प्रसंखज्जगुणा 5, अहोलोए विसेसाधिया 6 / [308] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे कम पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनकी अपेक्षा) अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, 4. (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, 5. (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं और 6. (उनकी अपेक्षा भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। 306. खेत्ताणुवाएणं सम्वत्थोया पुढविकाइया पज्जत्तया उड्ढलोयतिरियलोए 1, अधेलोयतिरियलोए विसेसाधिया 2, तिरियलोए असंखज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखज्जगुणा 4, उड्ढलोए प्रसंखज्जगुणा 5, प्रधेलोए विसेसाधिया 6 / [30] क्षेत्र के अनुसार 1. पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीव सबसे अल्प ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनकी अपेक्षा) अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, 4. (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, 5. (उनकी अपेक्षा) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं और 6. (उनकी अपेक्षा भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। 310. खत्ताणवाएणं सम्वत्थोवा पाउकाइया उड्लोयतिरियलोए 1, अधेलोयतिरियलोए विसेसाहिया 2, तिरियलोए असंखज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखज्जगुणा 4, उड्ढलोए असंखज्जगुणा 5, अहेलोए विसेसाहिया 6 / _[310] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे थोड़े अप्कायिक जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनकी अपेक्षा) अधोलोक-तिर्यकुलोक में विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगणे हैं, 4. त्रैलोक्य में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं, 5. ऊर्ध्वलोक में (इनसे) असंख्यातगुणे हैं, 6. (और इनसे भी) विशेषाधिक अधोलोक में हैं। 311. खत्ताणुवाएणं सम्वत्थोवा प्राउकाइया अपज्जत्तया उड्ढलोयतिरियलोए 1, अधेलोयतिरियलोए विसेसाधिया 2, तिरियलोए असंखज्जगुणा 3, तेलोक्के प्रसंखज्जगुणा 4, उड्ढलोए असंखज्जगुणा 5, अधेलोए विसेसाहिया 6 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org