Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 262] [प्रज्ञापनासूत्र 286. खेताणुवाएणं सम्वत्थोवारो जोइसिणीनो देवीप्रो उड्ढलोए 1, उड्ढलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणाओ 2, तेलोक्के संखेज्जगुणासो 3, अधेलोयतिरियलोए प्रसंखेज्जगुणासो 4, अधेलोए संखेज्जगुणानो 5, तिरियलोए प्रसंखेज्जगुणानो 6 / [289] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे अल्प ज्योतिष्क देवियाँ ऊर्ध्वलोक में हैं, 2. (उनसे) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणी हैं, 3. (उनसे) त्रैलोक्य में संख्यातगुणी हैं, 4. (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणी हैं, 5 (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणी हैं, 6. (और उनसे भी) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणी हैं। 260. खेत्ताणुवाएणं सब्वत्थोवा बेमाणिया देवा' उड्ढलोयतिरियलोए 1, तेलोक्के संखेज्जगुणा 2, अधोलोयतिरियलोए संखेज्जगुणा 3, अधेलोए संखेज्जगुणा 4, तिरियलोए संखेज्जगुणा 5, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा 6 / [260] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे कम वैमानिक देव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनसे) त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, 3. (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, 4. (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, 5. (उनसे) तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, 6. (और उनसे भी) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं। 261. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवानो वेमाणिणीनो देवीप्रो उड्ढलोयतिरियलोए 1, तेलोक्के संखेज्जगुणालो 2, अधेलोयतिरियलोए संखेज्जगुणानो 3, अधेलोए संखिज्जगुणानो 4, तिरियलोए संख जगुणाओ 5, उड्ढलोए असंख ज्जगुणाम्रो 6 / _ [291] क्षेत्र की अपेक्षा से 1. सबसे अल्प वैमानिक देवियाँ ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनसे) त्रैलोक्य में संख्यातगुणी हैं, 3. (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं, 4. (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणी हैं, 5. (उनसे) तिर्यक्लोक में संख्यातगुणी हैं, 6. (और उनसे भी) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणी हैं। 262, खत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा एगिदिया जीवा उड्ढलोयतिरियलोए 1, अधेलोयतिरियलोए विसेसाहिया 2, तिरियलोए असंखेज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखेज्जगुणा 4, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा 5, अधोलोए विसेसाहिया 6 / [292] क्षेत्र के अनुसार 1. सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, 2. (उनसे) अधोलोक-तिर्यकलोक में विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) तिर्यकलोक में असंख्यातगणे हैं, 4. (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, 5. (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं और 6. (उनसे भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। 263. खत्ताणवाएणं सम्वत्थोवा एगिदिया जीवा अपज्जत्तगा उड्ढलोयतिरियलोए 1, अधो. लोयतिरियलोए विसेसाहिया 2, तिरियलोए प्रसंखेज्जगुणा 3, तेलोक्के असंखेज्जगुणा 4, उड्ढलोएअसंखेज्जगुणा 5, अधोलोए विसे साहिया 6 / 1. ग्रन्थानम् 2000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org