Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] (213 प्रमाण हैं / देवों की अपेक्षा देवियां संख्येयगुणी अधिक हैं, क्योंकि वे देवों से बत्तीसगुणी हैं / देवियों की अपेक्षा सिद्ध अनन्तगुणे हैं और सिद्धों से तिर्यञ्च अनन्तगुणे अधिक हैं। इनकी अधिकता का कारण पहले बताया जा चुका है।' तृतीय इन्द्रियद्वार : इन्द्रियों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व 227. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चरिदियाणं पंचेंदियाणं प्रणिदियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा बिसेसाहिया वा ? / गोयमा ! सम्वत्थोवा पंचेंदिया 1, चरिदिया विसेसाहिया 2, तेइंदिया विसेसाहिया 3, बेइंदिया विसेसाहिया 4, प्रणिदिया अणंतगुणा 5, एगिदिया अणंतगुणा 6, सइंदिया विसेसाहिया 7 / [227 प्र.] भगवन् ! इन इन्द्रिययुक्त, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रियों में कौन किन से अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [227 उ.] गौतम ! 1. सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय जीव हैं, 2. (उन से) चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, 4. (उनसे) द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, 5. (उनसे) अनिन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं, 6. (उनसे) एकेन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं और 7. उनसे इन्द्रियसहित जीव विशेषाधिक हैं / 228. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंदियाणं अपज्जतगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया ? गोयमा! सम्वत्थोवा पंचेंदिया अपज्जलगा 1, चरिदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया 2, तेइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया 3, बेइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया 4, एगिदिया अपज्जत्तया अणतगुणा 5, सइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया 6 / [228 प्र.] भगवन् ! इन इन्द्रियसहित, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [228 उ.] गौतम ! 1. सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक हैं, 2. (उनसे) चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 3. (उनसे) त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 4. (उनसे) द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 5. (उनसे) एकेन्द्रिय अपर्याप्तक अनन्तगणे हैं और 6, (उनसे भी) इन्द्रियसहित अपर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं। 229. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंदियाणं पज्जत्तयाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाधिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा चरिदिया पज्जत्तगा 1, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया 2, बेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया 3, तेदिया पज्जतगा विसेसाहिया 4, एगिदिया पज्जत्तगा अणंतगुणा 5, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया 6 / 1. प्रज्ञापनासूत्र, मलय. वृत्ति, पत्रांक 120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org