________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] [ 243 अष्टम लेश्याद्वार : लेश्या की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व 255. एएसि णं भंते ! जीवाणं सलेस्साणं किण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साणं तेउलेस्साणं पम्हलेस्साणं सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा 1, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा 2, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा 3, अलेस्सा अणंतगुणा 4, काउलेस्सा प्रणंतगुणा 5, गोललेस्सा विसेसाहिया 6, किण्हलेस्सा विसेसाहिया 7, सलेस्सा विसेसाधिया 8 / दारं 8 // [255 प्र.] भगवन् ! इन सलेश्यों, कृष्णलेश्या वालों, नीललेश्या वालों, कापोतलेश्या वालों तेजोलेश्या वालों, पद्मलेश्या वालों, शुक्ललेश्या वालों एवं लेश्यारहित (अलेश्य) जीवों में से कोन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [255 उ.] गौतम ! 1. सबसे थोड़े शुक्ललेश्या वाले जीव हैं, 2. (उनसे) पद्मलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, 3. (उनसे) तेजोलेश्या वाले जीव संख्यातगुणे हैं, 4. (उनसे) लेश्यारहित जीव अनन्तगुणे हैं, 5. (उनसे) कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, 6. (उनसे) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं; 7. (उनसे) कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं, 8. (उनसे) सलेश्य जीव विशेषाधिक हैं। अष्टमद्वार // 8 // विवेचन-अष्टम लेश्याद्वारः लेश्या की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व प्रस्तुत सूत्र (255) में सलेश्य, पृथक्-पृथक् षट्लेश्यायुक्त एवं अलेश्य जीवों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गई है / लेश्याओं की अपेक्षा से अल्पबहुंत्व-सबसे अल्प शुक्ललेश्या वाले जीव हैं, क्योंकि शुक्ललेश्या लान्तक से ले कर अनुत्तर वैमानिक देवों तक में, कतिपय गर्भज कर्मभूमि के संख्यातवर्ष की आयु वाले मनुष्यों में तथा कतिपय संख्यातवर्ष की आयुवाले तिर्यंच-स्त्रीपुरुषों में ही पाई जाती है / उनकी अपेक्षा पद्मलेश्या वाले जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि पद्मलेश्या सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक-कल्प वासी देवों में, बहुसंख्यक गर्भज-कर्मभूमिज संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य-स्त्रीपुरुषों में तथा गर्भजतिर्यञ्च-स्त्रीपुरुषों में पाई जाती है और ये समुदित सनत्कुमार देव आदि, लान्तकदेव आदि से संख्यातगुणे अधिक हैं। उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, क्योंकि समस्त सौधर्म, ईशानकल्प के वैमानिक देवों में, सभी ज्योतिष्क देवों में तथा कतिपय भवनपति, वाणव्यन्तर, गर्भज तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों में, बादर-पर्याप्त-एकेन्द्रियों में तेजोलेश्या पाई जाती है / यद्यपि ज्योतिष्कदेव भवनवासी देवों तथा सनत्कुमार आदि देवों से असंख्यातगुणे होने से तेजोलेश्या वाले जीव असंख्यातगुणे कहने चाहिए, तथापि पद्मलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले जीव संख्यातगुणे ही हैं / यह कथन केवल देवों की लेश्याओं को लेकर नहीं किया गया है, अपितु समग्रजीवों को लेकर किया गया है, इसलिए पद्मलेश्या वालों में देवों के अतिरिक्त बहुत-से तिर्यञ्च भी सम्मिलित हैं। इसी तरह तेजोलेश्या वालों में भी हैं, और पदमलेश्या वाले तिर्यञ्च भी बहत हैं। अतएव उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे ही अधिक हो सकते हैं, असंख्यातगुणे नहीं / तेजोलेश्या वालों से अलेश्य (लेश्यारहित-सिद्ध) अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्धजीव अनन्त हैं। उनसे कापोतलेश्या बाले जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीवों में भी कापोतलेश्या सम्भव है और वनस्पतिकायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org