________________ 254 ] [प्रज्ञापनासूत्र [4] एतस्स णं भंते ! जीवत्थिकायस्स दवट्ठ-पदेसटुताए कतरे कतरेहितो प्रध्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सम्वत्योवे जीवस्थिकाए दवट्ठयाए, से चेव पदेसद्वताए असंखेज्जगुणे। [272-4 प्र.] भगवन ! इस जीवास्तिकाय के द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [272-4 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प द्रव्य की अपेक्षा से जीवास्तिकाय है और 2. वही प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुण है। [5] एतस्स णं भंते ! पोग्गलस्थिकायस्स दवट्ठ-पदेसटुताए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे पोग्गलस्थिकाए दवट्टयाए, से चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणे / [272-5 प्र.] भगवन् ! इस पुद्गलास्तिकाय के द्रव्य और प्रदेशों की दृष्टि से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? . [272.5 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से है, 2. प्रदेशों की अपेक्षा से वही असंख्यातगुणा है / [6] श्रद्धासमए ण पुच्छिज्जइ पदेसाभावा / [272-6] काल (अद्धा-समय) के सम्बन्ध में प्रश्न नहीं पूछा जाता, क्योंकि उसमें प्रदेशों का अभाव है। 273. एतेसि गं भंते ! धम्मस्थिकाय-अधम्मस्थिकाय-पागासस्थिकाय-जीवस्थिकाय-पोग्गलस्थिकाय-श्रद्धासमयाणं दवट्ठ-पदेसट्टताए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! धम्मस्थिकाए अधम्मत्थिकाए अागासस्थिकाए य एते णं तिण्णि वि तुल्ला दवट्ठपाए सव्वत्थोवा 1, धम्मत्थिकाए अधम्मस्थिकाए य एते णं दोणि वि तुल्ला पदेसटुताए असंखेज्जगुणा 2, जीवस्थिकाए दवट्ठयाए अणंतगुणे 3, से चेव पदेसट्ठताए असंखेज्जगुणे 4, पोग्गलत्थिकाए दवट्टयाए अणंतगुणे 5, से चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणे 6, प्रद्धासमए दबटु-पदेसट्टयाए अणंतगुणे 7, पागासस्थिकाए पएसट्टयाए अणंतगुणे 8 / दारं 21 // [273 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धा-समय (काल), इनमें से द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [273 उ.] गौतम ! 1. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीन (द्रव्य) तुल्य हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प हैं, 2. (इनसे) धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य हैं तथा असंख्यातगुणे हैं, 3. (इनसे) जीवास्तिकाय, द्रव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org