________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद ] [241 - [252 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प जीव मनोयोग वाले हैं, 2. (उनसे) वचनयोग वाले जीव असंख्यातगणे हैं, 3. (उनकी अपेक्षा) अयोगी अनन्तगुणे हैं, 4. (उनकी अपेक्षा) काययोगी अनन्तगुणे हैं और (उनसे भी) 5. सयोगी विशेषाधिक हैं। -पंचम द्वार // 1 // विवेचन--पंचम योगद्वार : योगों को अपेक्षा से जीवों का अल्पबहत्व-प्रस्तुत सत्र (252) में सयोगी, अयोगी, मनो-वचन-काययोगी की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। सबसे कम मनोयोगी जीव हैं, क्योंकि संज्ञीपर्याप्त जीव ही मनोयोग वाले होते हैं और वे थोडे ही हैं। उनसे वचनयोगी असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय आदि वचनयोगी संज्ञीजीवों से असंख्यातगुणे हैं, उनकी अपेक्षा अयोगी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्धजीव अनन्त हैं। उनसे काययोग वाले जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि अकेले वनस्पतिकायिकजीव ही सिद्धों से अनन्त हैं / यद्यपि अनन्त निगोदजीवों का एक शरीर होता है, तथापि उसी शरीर से सभी आहारादि ग्रहण करते हैं, इसलिए उन सभी के काययोगी होने के कारण उनके अनन्तगुणत्व में कोई बाधा नहीं पाती / उनकी अपेक्षा सामान्यतः सयोगी विशेषाधिक हैं, क्योंकि सयोगी में द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव आ जाते हैं।' छठा वेदद्वार : वेदों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व 253. एएसि णं भंते ! जीवाणं सवेदगाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं नपुंसकवेदगाणं अवेदगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोचा जीवा पुरिसवेदगा 1, इत्थीवेदगा संखेज्जगुणा 2, प्रवेदगा अणंतगुणा 3, नपुंसगवेदगा अणंतगुणा 4, सवेयगा विसेसाहिया 5 / दारं 6 // [253. प्र.] भगवन् ! इन सवेदी (वेदसहित), स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुसकवेदी और अवेदी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [253 उ.] गौतम ! 1. सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदी हैं, 2. (उनसे) स्त्रीवेदी संख्यातगुणे हैं; 3. (उनसे) अवेदी अनन्तगुणे हैं, 4. (उनकी अपेक्षा) नपुसकवेदी अनन्तगुणे हैं और (उनसे भी) 5. सवेदी विशेषाधिक हैं। छठा द्वार / / 6 / / विवेचन-छठा वेदद्वारः वेदों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत सूत्र (253) में वेदद्वार के माध्यम से जीवों में अल्पबहुत्व का प्रतिपादन किया गया है। सबसे थोड़े पुरुषवेदी हैं, क्योंकि संज्ञी तिर्यञ्चों, मनुष्यों और देवों में ही पुरुषवेद पाया जाता है। उनसे स्त्रीवेदी जीव संख्यातगणे अधिक हैं, क्योंकि जीवाभिगमसूत्र में कहा है-"तिर्यचयोनिक पुरुषों की अपेक्षा तिर्यंचयोनिक स्त्रियां तीन गुनी और त्रि-अधिक होती हैं तथा मनुष्यपुरुषों से मनुष्यस्त्रियां सत्तावीसगुणी एवं सत्तावीस अधिक होती हैं; एवं देवों से देवियां (देवांगनाएँ) बत्तीसगुणी तथा बत्तीस अधिक होती हैं।" इनकी अपेक्षा अवेदक (सिद्ध) अनन्तगुणे होते हैं, क्योंकि स्त्रीवेद, पुरवद और नपुसकवेद से रहित, नौवें गुणस्थान के कुछ ऊपरी भाग से आगे के सभी जीव तथा सिद्ध जीव; ये सभी अवेदी कहलाते हैं, और सिद्ध जीव अनन्त हैं / अवेदकों की अपेक्षा नपुसकवेदी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि नारक, एकेन्द्रिय जीव आदि सब नपुसकवेदी होते हैं और अकेले 1. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 134 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org